पठानकोट मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे बरसों पुराना गांव कोटला की पहचान यहां पर बने सदियों पुराने मां भगवती बगलामुखी मंदिर के कारण विश्व विख्यात है। जिसके सामने पहाड़ी पर मां भगवती बगलामुखी का बहुत भव्य मंदिर है। यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, यह पहाड़ी चारों ओर से पानी से घिरी हुई है। इस मंदिर की खासियत यह है। कि यह मंदिर दो नदियों के संगम स्थल पर बना है। मां भगवती बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या है। शत्रुओं का संहार करने बाली भगवती मां बगलामुखी की पूजा द्वापर से लेकर त्रेता युग में भी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती थी । मां भगवती बगलामुखी के शक्तिपीठ में जो भी कोई आता है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता। इस मंदिर में सदियों से पाठी परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी पूजा करता आ रहा है।
यह मंदिर जिसमें भगवती का मुख उत्तर की ओर स्थित और जिस तरह पांडुलिपियों में भगवती के स्वरूप का उल्लेख है, वही रूप आज भी इस मंदिर में विद्यमान है। उन्होंने कहा कि भगवती बगलामुखी के इस आस्था के केंद्र में हिमाचल के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ आंध्र प्रदेश तक के भक्त यहां पर अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर आते हैं। उन्होंने बताया कि पीतांबरा भगवती बगलामुखी के इस शक्तिपीठ पर बड़े-बड़े राजनेता और उद्योगपतियों के अतिरिक्त विदेशों से भी भक्त इस आस्था के मंदिर में अपना शीश नवा चुके हैं। इस शक्तिपीठ में बड़े-बड़े अनुष्ठान विद्वान ब्राह्मणों द्वारा वैदिक और तंत्रोक्त विधि द्वारा किए जाते है।
कहते हैं कि यह मंदिर जब 1500 वर्ष पहले यहां पर किला बना था, उससे भी पहले का है। गुलेर के राजा की कुलदेवी मां भगवती बगलामुखी है और साथ ही खन्ना, मेहरा, खत्री, सेठ, गुलेरिया, चोपड़ा, कपूर, अरोड़ा सहित भाट ब्राह्मण परिवारों की भी कुलदेवी है। यहां पर साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है। इस विश्व विख्यात शक्तिपीठ बगलामुखी मंदिर में जाने के लिए गगल हवाई अड्डे से मात्र 25 किलोमीटर दूर पठानकोट की ओर व पठानकोट से मंडी की तरफ जाने पर पठानकोट से लगभग 50 किलोमीटर दूर यह गांव स्थित है। यह भगवती बगलामुखी शक्तिपीठ चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है। जिस किले के बीच में यह मंदिर विराजमान है,यह खंडहर नुमा किला और इस किले में राजाओं के जमाने की बनी जेलों के अवशेष आज भी विद्यमान हैं। जहां पर राजा महाराजा अपने कैदियों को रखते थे। इस किले में भगवान गणेश का एक प्राचीन मंदिर भी है । इस मंदिर की नकाशकारी और चित्रकारी आज भी मौजूद है, जो देखने में बहुत भव्य है। लोगों की इस मंदिर में अटूट श्रद्धा और आस्था है।
प्रथम आराधना
- माता बगलामुखी का दस महाविद्याओं में 8वाँ स्थान है तथा इस देवी की आराधना विशेषकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता बगलामुखी की आराधना सर्वप्रथम ब्रह्मा एवं विष्णु ने की थी। इसके उपरांत परशुराम ने माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्धों में शत्रुओं को परास्त करके विजय पाई थी।[1]
महत्व
बगलामुखी जयंती पर मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है, जिससे कष्टों का निवारण होने के साथ-साथ शत्रु भय से भी मुक्ति मिलती है। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि सभी महायोद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गए। नगरकोट के महाराजा संसार चंद कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर माता बगलामुखी की आराधना किया करते थे, जिनके आशीर्वाद से उन्होंने कई युद्धों में विजय पाई थी। तभी से इस मंदिर में अपने कष्टों के निवारण के लिए श्रद्धालुओं का निरंतर आना आरंभ हुआ और श्रद्धालु नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं। – Ashutosh Kanwar